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कलाम
दिल-ए-शैदा को जिस ने तुर्रा-ए-दस्तार से बाँधागोया मंसूर को बे-रेस्मान-ए-दार से बाँधा
सय्यद अली केथ्ली
कलाम
बहार आए दिल-ए-सूफ़ी पे ज़ेर-ए-साया-ए-कामिलचमन पर रंग आ जाता है अक्सर अब्र-ओ-बाराँ में
सय्यद अली केथ्ली
कलाम
शबीह-ए-’आशिक़-ए-मुज़्तर को देख ऐ कोह-ए-रा’नाईअगर मंज़ूर है तुझ को तमाशा संग-ए-लर्ज़ां का
सय्यद अली केथ्ली
कलाम
अब्र है जाम है मीना है मय-ए-गुल-गूँ हैहै सब अस्बाब-ए-तरब साक़ी-ए-गुलफ़ाम नहीं
शाह नियाज़ अहमद बरेलवी
कलाम
पर्बत बाँस मँगवा मोरे बाबुल नीके मंडवा छिवाव रेडोलिया फँदाय पिया लै चली हैं अब संग नहिं कोई आव रे
अमीर ख़ुसरौ
कलाम
क़ुर्बान-ए-फ़ना एक तजल्ली-ए-तेरी होएज़ुल्मत-कदा-ए-हस्तती-ए-मौहूम से निकले
मिर्ज़ा मोहम्मद अली फ़िदवी
कलाम
ग़ुबार-ए-आस्ताँ हर रोज़ झाड़े मेहर-ए-मिज़्गाँ सेबिछाए माह हर शब चादर-ए-शफ़्फ़ाफ़ का'बा में
हाजी वारिस अली शाह
कलाम
डरे गुनह से बला हमारी अज़ल के दिन से जनाब-ए-बारीहमारे आक़ा-ए-नामवर को शफ़ीअ'-ए-महशर बना चुके हैं
क़ाज़ी उम्राओ अली जमाली
कलाम
या है मरीज़-ए-'इश्क़ तू या है हकीम-ए-दर्द-मंदमरहम कहूँ या दर्द या दरमाँ कहूँ या क्या कहूँ
सादिक़ु अली शाह
कलाम
उसी के इंतिज़ार-ए-दीद में हैरान है नर्गिसउसी के 'इश्क़ में ख़ूनीं-जिगर बर्ग-ए-हिना भी है